उस कमरे में जहाँ तुम नहीं हो तुम हमेशा रहते हो। यादों के नीम-अँधेरे में बजते रहते हैं अनकहे शब्द और अधूरे स्पर्श गुनगुनाते हैं जल कर बुझ जाती हूँ मैं और धुएँ-सा प्यार मँडराता रहता है। क्यों उस कमरे में जहाँ तुम हमेशा रहते हो तुम नहीं होते?
हिंदी समय में अनुकृति शर्मा की रचनाएँ